दिल को सहलाती कहानियों से विज्ञापन का चेहरा बदलने वाला – पीयूष पांडे
हाथों में जादू थे, दिल में हिंदुस्तान - पीयूष पांडे
जयपुर की गुलाबी फिज़ाओं में 1955 में जब एक बालक का जन्म हुआ, सात बहनों के आँखों के ख्वाब पूरा करने के लिए एक ऐसी कलाई आ गयी जिसपे सातों मन्नतों के धागे बंधे जा सकते थे. घर में पहला बेटा आया था - वो बेटा जो आगे चलकर पूरे हिंदुस्तान के दिलों पर अपने विज्ञापनों के रंग चढ़ा देगा. पीयूष पांडे का जन्म सिर्फ़ एक परिवार में नहीं, बल्कि कला की एक बगिया में हुआ था जहाँ हर पत्ती पर प्रतिभा की ओस झिलमिलाती थी. सात बहनों और एक भाई के बीच पले-बढ़े पीयूष के घर में रचनात्मकता ऐसे बहती थी जैसे माँड़ नदी राजस्थान की रेत में. बहन इला अरुण की आवाज़ में 'घूमर' का जादू था, भाई प्रसून पांडे की आँखों में विज्ञापन फिल्मों के सपने, और पीयूष के हाथों में - शब्दों को सोना बनाने की मिडास टच.
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जब 27 बरस के पीयूष 1982 में ओगिल्वी के दहलीज़ पर खड़े हुए, तब तक ज़िंदगी उन्हें कई रंग दिखा चुकी थी. रणजी ट्रॉफी के मैदान में गेंद से बातें की थी, चाय की पत्तियों में ज़िंदगी की ख़ुशबू ढूंढी थी, निर्माण के काम में ईंट-पत्थर जोड़े थे. लेकिन विज्ञापन की दुनिया में कदम रखते ही उन्हें अपनी मंज़िल मिल गई - वो मंज़िल जहाँ कहानियों की महफ़िल सजती थी. पीयूष जी के हाथों में वो करिश्मा था जो साधारण को असाधारण बना देता, मिट्टी को छूकर सोना कर देता.
80 के दशक में जब विज्ञापन की दुनिया अंग्रेज़ी के घूँघट में लिपटी थी, पीयूष जी ने हिंदी का दामन थाम लिया. उन्होंने गाँव की गलियों से शहर के चौबारों तक, हर हिंदुस्तानी दिल तक पहुँचने का रास्ता बना दिया. विज्ञापन अब महज़ प्रोडक्ट की तारीफ़ नहीं रहे, वो ज़िंदगी के गीत बन गए.
कैडबरी के क्रिकेट ग्राउंड पर जब वो लड़की नाची, तो पीयूष जी ने ख़ुशी को चॉकलेट में लपेट दिया. "कुछ ख़ास है" सिर्फ़ टैगलाइन नहीं, हर हिंदुस्तानी के दिल की धड़कन बन गई. वो लड़की सिर्फ़ नाच नहीं रही थी - वो आज़ादी का जश्न मना रही थी, परंपरा की जंजीरें तोड़ रही थी, बता रही थी कि औरत का ख़ुश होना भी ज़रूरी है. पीयूष जी ने एक विज्ञापन में पूरी सामाजिक क्रांति का बीज बो दिया.
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फेविकोल के विज्ञापनों में तो उनकी कल्पना के घोड़े ऐसे दौड़े जैसे थार के रेगिस्तान में बवंडर उठता है. भीड़ से लदी बस जो टूटती नहीं, अंडा जो फूटता नहीं - "फेविकोल का जोड़ है टूटेगा नहीं" सिर्फ़ गोंद की ताक़त नहीं, रिश्तों की मज़बूती का वादा बन गया. पीयूष जी के हाथों से जो भी विज्ञापन निकलता, वो हँसी के फव्वारे छोड़ जाता. उनके विज्ञापनों में गाँव की मिट्टी थी, शहर की रफ़्तार थी, और सबसे बढ़कर - हर हिंदुस्तानी का दिल था.
एशियन पेंट्स के लिए जब उन्होंने "हर घर कुछ कहता है" कहा, तो दीवारों को ज़बान मिल गई. घर सिर्फ़ चार दीवारी नहीं, भावनाओं का ठिकाना है - यह समझाया पीयूष जी ने. हर रंग में एक कहानी थी, हर ब्रश स्ट्रोक में एक एहसास था.
हच के पग विज्ञापन में छोटे से कुत्ते ने जो वफ़ादारी दिखाई, वो करोड़ों दिलों को छू गई. "यू एंड आई इन दिस ब्यूटीफुल वर्ल्ड" सिर्फ़ धुन नहीं, साथ चलने का वादा बन गई. नेटवर्क के कवरेज को प्यार की भाषा में ढाल दिया पीयूष जी ने - जैसे किसी सूफी ने इश्क़ को इबादत बना दिया हो.
1988 में "मिले सुर मेरा तुम्हारा" के बोल लिखकर पीयूष जी ने देश को एक सूत्र में पिरो दिया. यह गीत राष्ट्रीय एकता का गीत नहीं, हिंदुस्तान के दिल की आवाज़ बन गया. हर भाषा, हर प्रांत, हर रंग - सब एक धुन में घुल गए.
2014 में जब देश बदलाव की राह देख रहा था, पीयूष जी ने "अबकी बार मोदी सरकार" और "अच्छे दिन आने वाले हैं" के नारे दिए. यह सिर्फ़ राजनीतिक नारे नहीं थे - यह करोड़ों लोगों की उम्मीद की किरण थी, सपनों का संदेसा था. पीयूष जी जानते थे कैसे शब्दों में आशा भरी जाती है, कैसे आम आदमी की ज़बान में सियासत की बात की जाती है.
2018 में दोनों भाइयों - पीयूष और प्रसून - ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में लायन ऑफ सेंट मार्क का ख़िताब जीता, पहले एशियाई बनकर. यह सिर्फ़ दो भाइयों की जीत नहीं, पूरे परिवार की कला की विजय थी. जिस घर में सात बहनों ने एक भाई को पाला, उस भाई ने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया.
मेरे निजी तौर पर पीयूष जी से मिलना, किसी दरिया के किनारे बैठने जैसा था. उनमें समंदर की गहराई थी, लेकिन सतह पर बच्चे जैसी सहजता. उनकी मूँछों के नीचे छुपी मुस्कान में हज़ारों कहानियाँ थीं. वो बोलते तो ऐसे लगता जैसे कोई नानी दादी की कहानी सुना रहे हैं - सरल, मगर गहरी. उनसे बातें करना, विज्ञापन का पाठ नहीं, ज़िंदगी का सबक़ सीखना था.
जब २०१६ में चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल जयपुर में सिनेमा पर आधारित एक पैनल डिस्कशन में वो बिलकुल मेरे बगल में बेठे तो मुझे अपना कद थोडा ऊँचा ऊँचा सा नज़र आया, कार्यकम के पहले भी , कार्यक्रम के दौरान और में बाद में भी उनसे बातें करना और उनको सुनना मेरी जिन्दगी की किताब के कई महत्वपूर्ण पन्ने बढ़ा गया. वो कहते थे - "सबसे अच्छे ख़्याल सड़क से आते हैं, ज़िंदगी से आते हैं." और उन्होंने ठीक यही किया - गली-मोहल्ले की बातों को विज्ञापन का जामा पहनाया.
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चालीस सालों तक ओगिल्वी के साथ रहकर पीयूष जी ने भारतीय विज्ञापन का चेहरा ही बदल दिया. जब वो 1982 में आए, विज्ञापन अंग्रेज़ी का ग़ुलाम था. जब वो गए, विज्ञापन हिंदी का बादशाह बन चुका था. उन्होंने साबित किया कि देसी कहानियों में वैश्विक ताक़त है, गाँव की बोली में शहर को जीतने की क़ूवत है.
2016 में पद्मश्री मिलने पर पीयूष जी पहले विज्ञापन वाले थे जिन्हें यह राष्ट्रीय सम्मान मिला. लेकिन उनके लिए असली पुरस्कार तो वो मुस्कान थी जो उनके विज्ञापन देखकर करोड़ों चेहरों पर खिल जाती थी.
पीयूष जी सिर्फ़ विज्ञापन नहीं बनाते थे, वो भावनाओं की मूर्तियाँ गढ़ते थे. उनके हर विज्ञापन में ज़िंदगी की सच्चाई थी, गली-मोहल्ले की महक थी, रिश्तों की गर्माहट थी. वो जानते थे कि विज्ञापन दिमाग़ को नहीं, दिल को छूना चाहिए. और उनके हाथों का जादू ऐसा था कि जो छूते, वो सोना बन जाता.
24 अक्टूबर 2025 की सुबह जब निमोनिया की जटिलताओं से लड़ते हुए पीयूष जी ने आख़िरी साँस ली, तो लगा जैसे भारतीय विज्ञापन के आसमान से सबसे रोशन सितारा टूट गया. उनकी बहन इला अरुण ने कहा - "मेरा भाई हमारे परिवार की जान था". 70 साल की उम्र में भी उनका जादू कम नहीं हुआ था. उनके जाने से विज्ञापन की दुनिया में जो ख़लीपन आया, वो शायद कभी नहीं भरेगा.
लेकिन पीयूष जी के शब्द, उनकी कहानियाँ, उनके विज्ञापन हमेशा ज़िंदा रहेंगे. जब भी कैडबरी खाएंगे, फेविकोल देखेंगे, एशियन पेंट्स की रंगीन दीवारों को निहारेंगे - पीयूष जी की याद ताज़ा हो जाएगी. उनके हाथों ने जो शब्दों के फूल खिलाए, वो हमेशा महकते रहेंगे.
भारतीय विज्ञापन के इस सूरज को, शब्दों के इस जादूगर को, दिलों के इस दरवेश को - हमारा शत-शत नमन. पीयूष जी, आप चले गए लेकिन आपकी कहानियाँ हमेशा हमारे दिलों में धड़कती रहेंगी. आपके विज्ञापन सिर्फ़ विज्ञापन नहीं थे - वो ज़िंदगी के गीत थे, प्यार के क़िस्से थे, हिंदुस्तान की धड़कन थे.
आपके हाथों का जादू कभी फीका नहीं पड़ेगा. आपने जो मिट्टी को सोना बनाया, वो सोना हमेशा चमकता रहेगा.
©Avinash Tripathi -Official Website Link, IMDb , Animesh Films



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