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वो आवाज़ जिसमें मुस्कुराहट सुनाई देती है

 

उस आवाज़ से सीखें जो कभी नहीं टूटी

संगीत के आसमान में कुछ सितारे ऐसे होते हैं जो अपनी रोशनी से सिर्फ चमकते नहीं, बल्कि राह भी दिखाते हैं। शान्तनु मुखर्जी उर्फ़ शान भी एक ऐसा ही नाम है - वो आवाज़ जिसमें मुस्कुराहट सुनाई देती है, जिसकी आवाज़ में मिठास का दरिया बहता है और जिसके संघर्ष में ज़िन्दगी के गहरे सबक छुपे हैं।

खानदानी मौसीक़ार की परछाई में जन्मा एक राग

१९७२ में मुंबई के एक संगीतमय घराने में शान का जन्म हुआ। पिता मनु मुखर्जी खुद एक जाने-माने संगीत निर्देशक थे, जिन्होंने अपने बेटे की रगों में संगीत के बीज बो दिए। घर में तबला, हारमोनियम और सुरों की महफ़िल थी। बचपन से ही शान ने अपने पिता को स्टूडियो में माइक के सामने जूझते देखा, संगीत की बारीकियां सीखीं और समझा कि सुर सिर्फ गाने की चीज़ नहीं, जीने का तरीक़ा है।

Singer Shaan in young time

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लेकिन ज़िन्दगी की किताब में ख़ुशी के पन्नों के बीच ग़म के अध्याय भी लिखे होते हैं। १९९१ में जब शान सिर्फ १९ साल के थे, एक हादसे ने उनके पिता को उनसे छीन लिया। घर का सहारा, संगीत का उस्ताद और सबसे बड़ा दोस्त एक झटके में चला गया। उस वक़्त शान के कंधों पर सिर्फ अपने ख्वाबों का बोझ नहीं, बल्कि पूरे घर की ज़िम्मेदारी आ गिरी। माँ और बहन को संभालना था, और खुद को टूटने से बचाना था।

संघर्ष के सुर: जब राह में काँटे बिछे थे

पिता की मौत के बाद शान के सामने दो रास्ते थे - या तो टूट जाना या फिर अपने सपनों का परचम और ऊँचा उठाना। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। जिंगल्स गाने शुरू किए, छोटे-मोटे कार्यक्रमों में आवाज़ दी, और धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाने की कोशिश की। वो दौर आसान नहीं था। म्यूज़िक इंडस्ट्री में उस वक़्त नए चेहरों के लिए जगह कम थी और प्रतिस्पर्धा का समंदर बेहद गहरा।

Shaan with  Sister Sagarika in first album
(Source: https://www.discogs.com)
Shaan और Sagarika ने मिलकर Naujawan (1996) नाम का पॉप एल्बम जारी किया था, जिसमें दोनों ने साथ गाने किए थे। उसके बाद Shaan ने अपने स्वतंत्र (solo) रूप से Tanha Dil नामक एल्बम निकाली, जिसमें शीर्ष गीत “Tanha Dil” बहुत प्रसिद्ध हुआ।  

बुलंदी की उड़ान: जब आसमान भी छोटा पड़ गया

1999 में आई फ़िल्म 'प्यार में कभी कभी' शान के करियर का टर्निंग पॉइंट बनी। इस फिल्म का गाना 'मुसू मुसू हासी' ने सभी के दिल को छु लिया था. जिसने उन्हें असली पहचान दिलाई। उनके पहले एल्बम 'तन्हा दिल' ने उन्हें एक प्रमुख प्लेबैक सिंगर के रूप में स्थापित किया। 

'कोई कहे कहता रहे..कितना भी हमको दीवाना' (दिल चाहता है), "जब से तेरे नैना" (सांवरिया), "वो पल" (डोन), "भूल जा" (हसीना मान जाएगी) - एक से बढ़कर एक गाने शान की झोली में गिरते गए। उनकी आवाज़ में वो लचक थी जो रोमांस को रूमानियत में बदल देती थी, और वो ताक़त थी जो पॉप नंबरों में जान फूंक देती थी।

२००० के दशक में शान सिर्फ प्लेबैक सिंगर नहीं रहे, बल्कि एक कम्पलीट एंटरटेनर बन गए। वो आवाज़ जिसमें मुस्कुराहट सुनाई देती है, अब मंच पर भी चमकने लगी। रियलिटी शोज़ जैसे 'सा रे गा मा पा' और 'द वॉयस इंडिया' में जज बने। मंच पर उनकी परफॉर्मेंस देखने लायक़ होती थी - गाना, नाचना, ऑडियंस से बातचीत करना, सब कुछ इतनी सहजता से कि लगता था जैसे संगीत उनकी रगों में बह रहा हो।

विरासत और सम्मान: जब मेहनत को सलाम मिला

शान को अपने करियर में अनगिनत पुरस्कार और सम्मान मिले। फिल्मफेयर अवॉर्ड, आईफा अवॉर्ड, ज़ी सिने अवॉर्ड - हर मंच पर उनकी प्रतिभा को सराहा गया। लेकिन उनकी असली उपलब्धि ये थी कि उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। वो कुमार सानू, उदित नारायण जैसे दिग्गजों के दौर में आए, लेकिन अपनी खुद की जगह तराशी।

शान ने सिर्फ बॉलीवुड तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने निजी एल्बम्स निकाले, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर परफॉर्म किया, और दुनियाभर में भारतीय संगीत का परचम लहराया। उनके गाने आज भी युवाओं की पसंदीदा प्लेलिस्ट में शुमार हैं।

Singer Shaan


ज़िन्दगी के सबक:

शान की ज़िन्दगी एक खुली किताब है जिसमें संघर्ष, मेहनत और हौसले की कहानी लिखी है। उनकी यात्रा से हमें कई अहम सबक मिलते हैं.

 पिता की असमय मौत शान को तोड़ सकती थी, लेकिन उन्होंने उस दुख को अपनी ताक़त बनाया। ज़िम्मेदारियां उठाईं और आगे बढ़ते रहे। ज़िन्दगी में हार वो नहीं जो गिर जाए, हार वो है जो गिरकर उठे ही नहीं।

शान ने हमेशा अपने पिता की विरासत को सम्मान दिया। उन्होंने पश्चिमी संगीत को अपनाया लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत की नींव कभी नहीं छोड़ी। अपनी पहचान बनाओ, लेकिन अपनी जड़ें मत भूलो।

शान सिर्फ गायक नहीं हैं - वो परफॉर्मर हैं, टीवी होस्ट हैं, म्यूज़िक कंपोज़र हैं। उन्होंने खुद को एक दायरे में कैद नहीं रखा। आज के युग में सिर्फ एक हुनर काफ़ी नहीं, कई हुनर का गुलदस्ता बनना ज़रूरी है।

शिखर पर पहुँचने के बाद भी शान की सादगी और विनम्रता बरक़रार है। वो जूनियर कलाकारों को प्रोत्साहित करते हैं, रियलिटी शोज़ में प्रतिभागियों का हौसला बढ़ाते हैं। सफलता का असली मतलब है दूसरों को भी ऊपर उठाना।

आखिरी सुर: एक अधूरा गीत जो अभी बाक़ी है

शान की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। आज भी जब वो माइक पर आते हैं, तो वही जादू, वही जोश और वही सुरीलापन बरक़रार है - वो आवाज़ जिसमें मुस्कुराहट सुनाई देती है। नई पीढ़ी के गायकों के बीच भी उनकी आवाज़ की अलग पहचान है।

उनकी ज़िन्दगी हमें सिखाती है कि प्रतिभा ज़रूरी है, मगर मेहनत उससे भी ज़्यादा। परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो सकती हैं, लेकिन इरादे मज़बूत होने चाहिए। और सबसे ज़रूरी - अपने सपनों का परचम इतनी बुलंदी पर लहराओ कि आसमान भी सलाम करे।

शान का संगीत आज भी करोड़ों दिलों में बसता है, और उनका संघर्ष लाखों युवाओं को प्रेरणा देता है। वो सिर्फ एक गायक नहीं, एक मिसाल हैं - इस बात की कि हौसला हो तो किस्मत भी झुक जाती है।

©अविनाश त्रिपाठी

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