बी-ग्रेड से शुरू होकर बनी भारत की बहुआयामी गायिका
The Many Voices of Asha Bhosale: A Career That Transcended Genres and Generations
बरसात की आख़िरी फुहारों के बीच जब बादल अपने अंतिम राग से धरती को सराबोर करते हैं, उसी मौसम में भारतीय सिनेमा को एक ऐसा उपहार मिला जिसने आने वाले आठ दशकों तक संगीत को अपनी अनगिनत परतों से सँवारा। ८ सितंबर १९३३ को जन्मीं Asha Bhosale —यह नाम मात्र नहीं, बल्कि भारतीय संगीत का एक जादुई संसार है, जिसमें ठुमरी की मिठास है, ग़ज़ल की नफ़ासत है, लोकगीतों की धरती की खुशबू है और पाश्चात्य धुनों की आधुनिकता भी।
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आशा भोंसले का जीवन आसान नहीं रहा। बेहद कम उम्र में पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर के देहांत ने परिवार को झकझोर दिया। लता मंगेशकर ने ज़िम्मेदारी संभाली और छोटी बहन आशा ने भी संगीत के सफ़र की शुरुआत की। महज़ नौ साल की उम्र में उन्होंने मराठी फ़िल्म माझा बाळ (१९४३) में पहला गीत गाया। लेकिन शुरुआती दिनों में उन्हें अक्सर "बी-ग्रेड" फ़िल्मों में गाने का मौका मिला, जहाँ स्थापित गायकों की जगह उनके हिस्से में “छोटे” या “हल्के-फुल्के” गाने आते। यही संघर्ष उनके लिए सीख और हथियार बन गया।
आशा भोंसले की सबसे बड़ी पहचान उनकी बहुरंगी गायकी है। यदि कभी "इन आंखों की मस्ती के मस्ताने" जैसे ग़ज़लों से वे सुरों का शास्त्रीय शिल्प गढ़ती हैं, तो "पिया तू अब तो आजा" जैसे गाने में उनकी आवाज़ में बिजली-सी चपलता दौड़ पड़ती है।
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ग़ज़ल और ठुमरी: गुलाम अली, मेहदी हसन और जगजीत सिंह जैसे दिग्गजों के साथ उन्होंने ग़ज़ल का जादू रचा।
क़व्वाली जैसी विधा में उनके द्वारा गले से रची गई कव्वाली तेरे बिन नहीं लगदा दिल मेरा" जैसे गीतों में उनकी सूफ़ियाना छटा दिखाई देती है।
पाश्चात्य धुनें में ओ. पी. नैयर और आर. डी. बर्मन के साथ काम करते हुए उन्होंने जैज़, रॉक, डिस्को तक में अपनी आवाज़ मिलाई।
लोक और शास्त्रीय, मराठी भावगीत से लेकर पंजाबी बोलियों तक, वे हर क्षेत्रीय सुरों को आत्मसात कर लेती हैं।
आशा भोंसले का करियर संगीतकारों के साथ उनके अनूठे तालमेल के लिए भी याद किया जाता है।
ओ. पी. नैयर से उनका मेल आशा की आवाज़ से ऐसा बैठा कि हिंदी सिनेमा में एक नया युग आया। ये है रेशमी जुल्फों का अंधेरा और आओ हुजूर तुमको आज भी उसी जादू की मिसाल हैं।
आर. डी. बर्मन से रिश्ता सिर्फ़ संगीत तक सीमित नहीं रहा। "दम मारो दम" से लेकर "पहली बार देखी ऐसी सुरत" तक, उन्होंने पॉप और फ्यूज़न को मुख्यधारा में पहुँचाया। गीत बनने के दौरान के एक नाजुक लम्हे में आशा भोंसले ने आवाज के साथ , अपने दिल भी पंचम की तरफ उछाल दिया । इस प्रेम में खुशबू भी थी , सुकून भी तो कुछ दर्द भी ...
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फिर ख़य्याम और जगजीत सिंह की उंगलियों ने उनकी आवाज़ में ग़ज़लों की कोमलता और दर्द को नया आयाम दिया ।
Source: https://indianexpress.com/ |
आशा भोंसले केवल भारतीय सिनेमा तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने इंग्लैंड के बॉयज़ बैंड "कोर्नर्सशॉप" से लेकर पाकिस्तानी ग़ज़ल गायकों तक के साथ काम किया। उनका ऐल्बम उस्ताद और दिवा ने ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकन पाया, जो इस बात का प्रमाण है कि उनकी आवाज़ की गूंज सिर्फ़ भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं, पूरी दुनिया में फैली।
संगीत के साथ उनका व्यक्तिगत जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। कम उम्र में विवाह और उसके बाद की कठिनाइयों ने उन्हें और मजबूत बनाया। बाद में आर. डी. बर्मन के साथ उनका रिश्ता भारतीय फिल्म संगीत का एक स्वर्ण अध्याय बन गया। संघर्ष, सफलता और पुनः संघर्ष—यह चक्र उनकी जीवनी का हिस्सा है।
आशा भोंसले केवल एक गायिका नहीं, बल्कि समय के साथ चलने वाली कलाकार हैं। उन्होंने हमेशा नई शैलियों को अपनाया, प्रयोग किए और अपनी आवाज़ को ताज़गी दी। यही कारण है कि आज भी युवा पीढ़ी उन्हें उतने ही उत्साह से सुनती है जितना ६० के दशक में उनके गाने बजते समय सिनेमा हॉल गूंजते थे. आवाज के बदन पर मौसम और जरूरत के हिसाब से जरदोजी करने वाली आशा ताई को जन्मदिन मुबारक
©Avinash Tripathi -Official Website Link, IMDb , Animesh Films
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