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एक एयरपोर्ट की खामोशी से लेकर स्टेडियम की गूंज तक

 "वो पतली  नाजुक सी लड़की और आसमान की जीत": जेमिमा रोड्रिग्स 

सुबह के पाँच बजे थे — मुंबई एयरपोर्ट अब भी आधा सोया हुआ था। भीड़ में एक पतली-सी लड़की खामोश खड़ी थी, मगर उसकी आँखों में कुछ जाग रहा था। सामने से भारतीय महिला टीम लौट रही थी — वर्ल्ड कप की हार से झुकी हुई, मगर माथे पर अब भी ज़िद की हल्की सी लकीर। उस लड़की ने कुछ कहा नहीं, बस मुट्ठियाँ भींच लीं और मन ही मन एक वादा किया — “कभी मैं भी इस आसमान का हिस्सा बनूँगी।”

jemimah rodrigues

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वो दिन बीत गया, मगर उस खामोशी ने एक गूंज बो दी थी — जो सालों बाद स्टेडियम में सुनाई देने वाली थी।

२०१७ ,मुंबई एयरपोर्ट की सुबह थी।

पाँच बज रहे थे — आसमान आधा नीला, आधा थका हुआ।

भीड़ में से एक पतली-सी लड़की,  भीगी आँखों से देख रही थी —

वो भारतीय महिला टीम लौट रही थी…

महिला वर्ल्ड कप फाइनल की हार के बोझ से भरी हुई, मगर माथे पर अब भी वही जिद —

कि अगली बार कहानी अधूरी नहीं छोड़ी जाएगी।


उस लड़की ने उस दिन कुछ कहा नहीं।

सिर्फ हथेलियों में मुट्ठी बाँधी,

और नम आंखों ने एक ख्वाब बो दिया — “कभी मैं भी खेलूँगी।” जमीन गीली हो तो शज़र उग ही आते है । उस लड़की की आंखों के कब के पेड़ भी मजबूती से उगने लगे। 

वो लड़की थी — जेमिमा रोड्रिग्स।

Jemimah Rodrigues Image

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वक्त की सुई ने आठ साल का चक्कर लगाया।

कई शामें टूटीं, कई सुबहें घिसीं,

कभी नेट्स पर वो गिरती, कभी खुद से उठती,

कभी आलोचनाओं की आग में जलती , 

पर भीतर कोई लौ थी जो बुझने से इंकार करती रही।


और फिर आया — २०२५ का विश्व कप।

भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया , सेमीफाइनल 

वही ऑस्ट्रेलिया जिसने कभी हमें आँसुओं में डुबोया था।

जेमिमा उतरी मैदान में 

वो ही पतला बदन, मगर अब लोहे की ठसक लिए।

पहले मैच में शून्य,

दूसरे में टीम से बाहर —

मगर उसकी आँखों में अब नमी नहीं,

बल्कि दृढ़ता के पत्थर जड़ चुके थे। 

Jemimah picture semi final


सेमीफाइनल की दोपहर,

डी वाई पाटिल स्टेडियम में नमी थी , उस नमी के एक अंश, जेमिमा की आंखों से भी आया था , लेकिन एक मैच में ड्रॉप होने की निराशा की नमी के साथ , जेमिमा के भीतर ज्वाला , एक धधक भी थी। 

पहला शॉट — जैसे किसी ने कैनवास पर

पहली सफेद लकीर खींची हो।

फिर दूसरा — जैसे बादलों पर धूप उतर आई हो।

हर रन, हर स्ट्रोक

किसी अधूरी कविता का शेर बनता गया।


वो दौड़ती रही, सांसें छोटी होती गईं, बदन से पानी सूखता जा रहा था फिर भी उसकी आंखों में जीत की चमक, बढ़ती जा रही थी। 

 बैट की गूंज से , कानों में जीत की पुकार का शोर बढ़ता जा रहा था 

कभी सिंगल ,कभी गैप में कलाई से बाल को सहलाते , जब जेमिमा की आंख, साथ खेल रही कप्तान हरमन से मिली ,तो हरमन कौर ने मुस्कुराकर कहा,

"अब तू नहीं रुकने वाली, है ना?"

जेमिमा ने सिर झुकाकर कहा — “अब नहीं।”

उसने 127 रन ( कलाकृतियां ) बनाए। 

ना जैसे बल्ला चला, ना जैसे कोई मैच हुआ।

वो तो जैसे किसी सपने ने

अपना अंत खुद लिख लिया हो।

हर चौका एक प्रतिशोध था,

हर चौका, ऑस्ट्रेलिया के गर्व की मूर्ति पर, जेमिमा के बल्ले से एक चोट थी। ऑस्ट्रेलिया के अहम के  मुजस्समें में दरार पड़ने लगी थी । उस  किशोर लड़की को सलाम —

जो कभी पाँच बजे एयरपोर्ट पर खड़ी थी।


जब जीत का आखिरी रन बना,

टीम हवा में कूद रही थी —

और जेमिमा बस घुटनों पर बैठी,

दोनों हथेलियों से ज़मीन छू रही थी। उसकी आंखे तशककुर में जुड़ गए थे। 

उसने ऊपर देखा — शायद उस आसमान को

जहाँ उसने कभी अपना वादा बोया था।


नवी मुंबई के डी वाई पाटिल स्टेडियम की रोशनी में

वो पतली लड़की अब पूरी कहानी बन चुकी थी —

जिसकी आँखों में कभी आँसू थे,

अब उनमें चमक थी, जो सदियों तक रहेगी। 


ऑस्ट्रेलिया हार गया था,

मगर भारत ने सिर्फ मैच नहीं जीता —

उसने अपनी बेटी का सपना जीता था।

© अविनाश त्रिपाठी Official Website LinkIMDb , Animesh Films

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