जब मैदान पर सन्नाटा था, और दिल में तूफ़ान
दुबई की उस रात का हीरो, जिसने गलियों में टेनिस बॉल से सपने देखे थे
कल, 28 सितंबर को दुबई के मैदान पर जब तिलक वर्मा ने आखिरी ओवर में छक्का मारा, तो लगा जैसे हैदराबाद की गलियों से उठी एक पुकार, दुनिया के सबसे बड़े मंच पर गूंज गई. भारत बनाम पाकिस्तान के एशिया कप फाइनल में तिलक ने अपनी नाबाद 69 रनों की पारी से सिर्फ मैच नहीं जीता, बल्कि करोड़ों दिलों में अपनी जगह बना ली.
पर ये कहानी सिर्फ़ कल की नहीं है. ये कहानी उन टूटते सपनों की है जो फिर से जुड़ जाते हैं, उन हौसलों की है जो भूख से भी बड़े होते हैं, और उस मोहब्बत की है जो क्रिकेट के मैदान और ज़िंदगी के संघर्ष को एक सूत्र में पिरो देती है.
गलियों में खेलते टेनिस बॉल से शुरू हुआ सफर
8 नवंबर 2002 को हैदराबाद में जन्मे नंबूरी ठाकुर तिलक वर्मा की कहानी वैसी ही है, जैसे सूखी धरती पर बारिश की पहली बूंद. पिता नंबूरी नागराजू एक इलेक्ट्रीशियन थे, माँ गायत्री देवी घर संभालती थीं. पैसे की तंगी थी, पर सपने देखने पर कोई पाबंदी नहीं थी.
तिलक जब 11 साल के थे, तब बरकास ग्राउंड में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलते हुए एक शख्स की नज़र उन पर पड़ी. कोच सलाम बयाश ने उनमें वो देखा, जो शायद तिलक खुद नहीं देख पाए थे - एक कच्चा हीरा, जिसे तराशने की ज़रूरत थी.
बयाश ने सिर्फ़ कोच की भूमिका नहीं निभाई, वो एक पिता की तरह साथ खड़े रहे. हर रोज़ 40 किलोमीटर की यात्रा करके तिलक को लीगाला क्रिकेट अकादमी ले जाते. जब तिलक के पिता की कमाई से ट्रेनिंग के खर्चे नहीं उठ पाते, तो बयाश ने खुद उन सारे खर्चों को उठाया. किट से लेकर फीस तक, सब कुछ.
ये प्यार नहीं तो क्या था? ये वो रिश्ता था जो खून से नहीं, बल्कि विश्वास से बनता है.
जब परिवार ने खुद को भूखा रखा, पर बेटे के सपने को जीवित रखा
तिलक का परिवार ऐसा था जो अपने पेट पर पत्थर रख सकता था, पर बेटे के सपनों पर नहीं. उनके पिता ने कभी नहीं कहा कि क्रिकेट छोड़ दो. उन्होंने कभी नहीं कहा कि हमारे पास पैसे नहीं हैं. बस चुपचाप मेहनत करते रहे, और तिलक को खेलने दिया.
ये वही परिवार था जिसने तिलक को कभी मैदान में खेलते नहीं देखा था. हैदराबाद के लिए जब वो अंडर-19 टूर्नामेंट में कप्तानी करते थे, तब भी उनके माँ-बाप मैदान नहीं आते थे. डर था शायद, या फिर उम्मीद कि एक दिन उनका बेटा इतना बड़ा मुकाम हासिल करेगा कि उसे देखने के लिए दुनिया भर के लोग आएंगे.
और वो दिन आया. 2022 में जब मुंबई इंडियंस ने तिलक को 1.7 करोड़ में खरीदा, तो उनके कोच की आँखें भर आईं. वीडियो कॉल पर माँ बोल नहीं पा रही थीं, पिता के गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी. तिलक भी रो रहे थे, पर वो आँसू खुशी के थे, राहत के थे, और एक वादे को पूरा करने की ज़िद के थे.
IPL का मंच और सितारा बनने की यात्रा
2022 में मुंबई इंडियंस के लिए खेलते हुए तिलक ने पहले ही मैच में दिखा दिया कि वो यहाँ सिर्फ़ खेलने नहीं, बल्कि छाप छोड़ने आए हैं. राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ 33 गेंदों में 61 रन की पारी ने सबको चौंका दिया. 19 साल की उम्र में वो मुंबई इंडियंस के सबसे कम उम्र के अर्धशतकीय बन गए.
| (Source: Tilka Verma in his First IPL https://www.dnaindia.com) |
रोहित शर्मा ने 2022 में ही कह दिया था कि तिलक जल्द ही भारत के लिए सभी फॉर्मेट में खेलेंगे. और रोहित की नज़र कभी गलत नहीं होती.
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IPL 2023 और 2024 में तिलक ने और भी धार दिखाई. 416 रन, तीन अर्धशतक, और 149 से ऊपर की स्ट्राइक रेट. पर असली इम्तिहान अभी बाकी था - अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का.
भारतीय टीम में वो पल, जिसका इंतज़ार था
3 अगस्त 2023. वेस्टइंडीज़ के खिलाफ T20I डेब्यू. तिलक ने अपनी दूसरी और तीसरी गेंद पर ही छक्के लगा दिए. जैसे कह रहे हों - "मैं यहाँ डरने नहीं, खेलने आया हूँ."
नवंबर 2024 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तिलक ने इतिहास रच दिया. T20I में लगातार तीन शतक लगाने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर बन गए. 107, 120, और 51 नॉट आउट - ये सिर्फ़ रन नहीं थे, ये एक संदेश था कि तिलक वर्मा नाम का ये लड़का अब रुकने वाला नहीं.
28 सितंबर, 2025 - वो रात जो इतिहास बन गई
दुबई के मैदान पर भारत बनाम पाकिस्तान का फाइनल. पाकिस्तान ने 146 रन बनाए थे, और भारत के तीन विकेट पावरप्ले में ही गिर चुके थे. अभिषेक शर्मा, सूर्यकुमार यादव, शुभमन गिल - सब पवेलियन लौट चुके थे. स्कोर था 20 रन पर 3 विकेट.
ऐसे में तिलक क्रीज़ पर आए. प्रेशर था, पर चेहरे पर कोई घबराहट नहीं. धीरे-धीरे रन बनाए, संजू सैमसन के साथ 57 रन की साझेदारी की, फिर शिवम दुबे के साथ 60 रन जोड़े.
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आखिरी ओवर में 10 रन चाहिए थे. तिलक ने पहली गेंद पर दो रन लिए, दूसरी गेंद पर छक्का मारा, और तीसरी गेंद पर मिड-ऑफ को गेंद भेजी. रिंकू सिंह ने विनिंग रन बनाया, पर असली हीरो तिलक थे - 53 गेंदों में नाबाद 69.मैदान पर खड़े तिलक ने दिल के आकार का इशारा किया. उस पल, हैदराबाद की गलियों में खेलते टेनिस बॉल क्रिकेट से लेकर दुबई के सबसे बड़े मंच तक का सफर आँखों के सामने घूम गया होगा.
अधूरी कहानियाँ ही अमर होती हैं
तिलक की कहानी अभी लिखी जा रही है. अभी बहुत कुछ बाकी है - टेस्ट क्रिकेट का सपना, वर्ल्ड कप जीतने की ख्वाहिश, और अपने माँ-बाप के लिए एक घर बनाने का वादा.
पर जो बात तिलक को खास बनाती है, वो ये है कि उन्होंने कभी अपनी जड़ों को नहीं भुलाया. आज भी वो उसी विनम्रता से बात करते हैं, उसी लगन से मेहनत करते हैं, और उसी ज़िद से खेलते हैं.
तिलक वर्मा की कहानी हमें ये सिखाती है कि जब सपने टूटते हैं, तो उन्हें फिर से जोड़ने की ताकत हमारे अंदर ही होती है. जब दुनिया कहे कि तुम्हारे पास साधन नहीं हैं, तब भी अगर तुम्हारे पास हौसला है, तो कोई तुम्हें रोक नहीं सकता.
कल की रात तिलक ने सिर्फ़ एशिया कप नहीं जीता, उन्होंने हर उस बच्चे को उम्मीद दी जो गलियों में टेनिस बॉल से खेलता है और स्टेडियम में खेलने का सपना देखता है.
"उगते बसंत और टूटते पतझड़ के बीच, तिलक ने अपनी कहानी खुद लिखी. और वो कहानी अब करोड़ों दिलों में जीवित है."
©अविनाश त्रिपाठी




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