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"चीकू कैसे बना विराट"- Virat Kohli Retirement

 

More Than Just Cricket: The Emotional Road Leading to Virat Kohli Retirement

दिल्ली की सर्दी कुछ खास होती है। हल्की धूप में बर्फ़ीली हवा का आलिंगन, और उसी मौसम में एक बच्चे ने आंखें खोलीं — नाम रखा गया विराट, मगर घर के प्यारे से नाम चीकू ने जल्दी ही उसकी पहचान बना ली।

थोड़ा बड़ा हुआ चीकू तो उसकी दोस्ती गेंदों से होने लगी — कभी फुटबॉल, कभी टेनिस बॉल, तो कभी क्रिकेट की बॉल। हर गेंद में उसे एक नया रिश्ता दिखता। पैरों की चपलता और हाथों की लय में गजब की ट्यूनिंग बनने लगी थी। मगर जैसे ही बल्ला हाथ में आया, एक नई कहानी शुरू हो चुकी थी।


पिता का विश्वास और स्टेडियम तक का सफर

विराट के पिता, प्रेम कोहली, एक वकील थे। मगर अपने बेटे की आँखों में छिपे सपने उन्होंने बहुत पहले पढ़ लिए थे। बेटे के हाथों में बैट देख उन्हें एहसास हुआ कि यह सिर्फ़ लकड़ी का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनके बेटे का अस्त्र है — जो उसे कुछ बड़ा बना सकता है।

दिल्ली के वेस्ट दिल्ली क्रिकेट अकादमी में जब विराट का दाख़िला हुआ, तब से पिता रोज़ स्कूटर पर बैठाकर बेटे को स्टेडियम लाते। सुबह की ठंडी हवा और बेटे की आँखों में चमक — यही उनकी दिनचर्या बन गई थी। जब बेटा पसीना बहाता, पिता दूर खड़े होकर उसका हर शॉट, हर ड्राइव, हर गलती ग़ौर से देखते। बेटे की मेहनत में उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी।

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चीकू से कोहली तक — सफर की पहली छलांग

कच्ची उम्र से पक्के इरादों वाला विराट, धीरे-धीरे चीकू से “कोहली” बनने लगा। जूनून और मेहनत ने रास्ता दिखाया और 2008 में उन्होंने अंडर-19 वर्ल्ड कप में भारत की कप्तानी की। न केवल नेतृत्व किया, बल्कि भारत को चैंपियन भी बनाया।

इस जीत ने क्रिकेट की दुनिया में विराट के नाम की दस्तक दे दी। उसी साल उन्हें भारतीय टीम की वनडे कैप मिली और श्रीलंका के खिलाफ मैदान पर उतरे। उनके लिए 22 गज़ की पिच अब युद्धभूमि बन चुकी थी।



टेस्ट क्रिकेट में पहला झटका और फिर उससे उपजी जिद

2011 में विराट को टेस्ट क्रिकेट में मौका मिला। वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ, जमैका की ज़मीन पर उन्होंने डेब्यू किया। लेकिन दोनों पारियों में असफल रहे। इस नाकामी ने विराट को अंदर तक झकझोर दिया। पर ये झटका उन्हें तोड़ नहीं पाया — बल्कि और मज़बूत बना गया।

उन्होंने खुद से वादा किया — "अब रुकना नहीं है।" फिर उन्होंने अपने जुनून को और तेज़ आंच पर चढ़ा दिया। पसीना, त्याग और अनगिनत नेट सेशन — सब कुछ एक ही मक़सद के लिए।

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वर्ल्ड कप 2011 और विराट की जीत की शुरुआत

उसी साल भारत ने महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में वर्ल्ड कप जीता, और विराट कोहली उस विजेता टीम का हिस्सा बने। उन्होंने अहम मौकों पर उपयोगी पारियां खेलीं और यह साबित किया कि वह केवल भविष्य नहीं, बल्कि वर्तमान भी हैं।

चीकू से विराट बनने का सफर सिर्फ़ क्रिकेट का नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और सपनों के सच होने की एक ज़िंदा मिसाल है। एक बच्चे की आंखों में देखा गया सपना, जब एक पिता का विश्वास बन जाए और मेहनत उसका पसीना — तब जन्म होता है कोहली जैसे सितारों का।

आज विराट कोहली न सिर्फ़ भारत के सबसे सफल बल्लेबाज़ों में से एक हैं, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा हैं जो किसी गली, किसी मैदान या किसी अकेले कमरे में अपने ख्वाब बुन रहा है।

Avinash Tripathi

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