Renowned Tabla Maestro Zakir Hussain Passes Away at 73
Renowned Tabla Maestro Zakir Hussain, a Pioneer of Indian Classical Music, Leaves Behind an Enduring Legacy
शायद १९८८ या १९८९ का साल रहा होगा. अचानक टीवी पर एक बेहद खुशशक्ल चेहरा जिसमे एक कशिश थी ,लेकिन जिसकी उंगलियों में बला का जादू था। वो ताज महल के सामे बैठकर तबले पर उंगलियों में ऐसी हरकत लाता था कि तबला बोलने लगता था. थोड़ी देर उंगलियों की इस करतब के बाद,एक आवाज़ उभरती है, वाह उस्ताद और उस शख्स का बेहद लताफत से ये कहना ' अरे हुज़ूर....वाह ताज बोलिये। 'काफी देर तक आँखे, उन घुंघराले बालो वाले शख्स की उंगलियों , उनसे निकलती जादुई ध्वनि में खोया रहा. बाद में पता चला ये तबला की दुनिया के नए उस्ताद जादूगर ज़ाकिर हुसैन है।
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Zakir Hussain |
पिता उस्ताद अल्लाहरक्खा खान के सबसे बड़े सुपुत्र और हुनर के मामले भी बेहद काबिल ज़ाकिर साब तब से दिल में उतर गए थे. थोड़ा ज़िन्दगी ने किशोर उम्र की गुलाबियत की तरफ कदम रखा तब उनका ज़ुल्फ़ को झटकाना , एक अलग किस्म का लुत्फ़ देता था. उस उम्र में बाल लम्बे किये और स्कूल की टेबल को तबला बजाकर , ज़ुल्फो को वैसे ही झटकने का उपक्रम करता. ये खुमार काफी सालो तक रहा
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Zakir Hussain with Shankar Mahadevan and other artists |
धीरे धीरे मौसिकी थोड़ी मालूमात होती गयी तो ज़ाकिर साब के हुनर का और मुरीद होता चला गया. उनके वेस्टर्न जाज आर्टिस्ट के साथ की जुगलबंदी के वीडियो देखे तो हिंदुस्तानी होने पर और गर्व होने लगा.
बनारस घराने के तबला का बड़ा फैन और ख़ास तौर पर गुदयी महाराज के तबला वादन का मुरीद होने के कारण, तबले के वीडियो देखता रहता. उसी दौरान बहुत से वीडियो ज़ाकिर साब के देखे. लगा कोई इतनी मुलामियत के साथ, मुस्कुराते हुए तबले के बदन को ऐसे सहलाता की ध्वनि कानो में ठहर जाती. एक तरह उनकी उंगलिया ,तबले के बदन पर रक़्स करती , दूसरी ओर ज़ुल्फ़, हवा में नृत्य करते और दोनों का आपसी तालमेल बना रहता.
तबले के चमड़े को इतनी गर्मजोशी से सहलाने वाली और महीन हरकत करने वाली फिर कोई ऊँगली आएगी, इसमें हमेशा शक रहेगा.
तबले को इतना ज़रूरी बनाने इस उस्ताद को दिल से सलाम और विनम्र श्रद्धांजलि
Author
Filmmaker, Writer, Poet, Journalist
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