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Jackie Shroff - A Golden Heart Actor

 

 

                    तीन बत्ती से आसमान तक का सफर -जैकी श्रॉफ 

मुंबई की तपती  ज़मीन , काले बादल ओढ़ कर, खुद को ठंडा करने की कोशिश में थी।  ऐसे ही बादल  के आमद की  एक सांवली शाम, दक्षिण मुंबई के बस स्टेशन पर एक गौर वर्ण का तराशे हुए जिस्म का नौजवान , बेपरवाही से खड़ा था.६ फ़ीट लम्बे क़द वाले इस युवक के आँखे छोटी थी लेकिन इन आँखों में बंदिशे तोड़कर , उस राह पर चलने की तेज़ ख्वाहिश चमक रही थी , जिस पर अभी तक कोई न चला हो. ,शायद यही गहरी आँखे , गोरे  तीखे नक्श और घनी मूछे उसे भीड़ से बिलकुल अलहदा अंदाज़ दे रही थी. 

उसके इसी बेफिक्र अंदाज़ पर फ़िदा एक शख्स ,उसे मॉडलिंग का ऑफर देता है. अपने आँखों में बोये छोटे से ख्वाब के सज़र को अचानक, पानी मिलते देख ये युवक, अंदर से हरा..अंदर से शादाब होने लगता है।  सिर्फ कुछ पूर्णिमाओं और अमावस्या के बाद ये युवक ,  बेहद आम परिवार का ये नौजवान अब प्रिंट मॉडलिंग का एक जाना  पहचाना चेहरा बन जाता है।   
मैगज़ीन में अपने तस्वीरो को सफ़ेद परदे पर आदमक़द बनाने की चाह में ये लड़का , अब कभी कभी वक़्त निकाल कर फिल्म ऑफिस के इर्द गिर्द चक्कर काटता।  अब कुछ छोटे किरदार में ते बड़े बड़े ख्वाबो वाला लड़का दिखने लगता है

मॉडलिंग और फिल्म में नाआशना  से किरदार करते वो लड़का एक दिन पारस से टकरा जाता है. बेहद सादा दिल ,सच्चे  और पारदर्शी इस नौजवान की साफगोई ,पारस को भा जाती है. तीन बत्ती की झुग्गियों के दुःख दर्द में बरगद की तरह खड़े रहने वाले जग्गू दादा , उर्फ़ जयकिशन काकू भाई श्रॉफ अब ' पारस , सुभाष घई  की फिल्म 'हीरो' का नायक होता है और दुनिया उसे जैकी श्रॉफ के नाम से जानने  लगती है.

 

Source:https://timesofindia.indiatimes.com/entertainment

 कच्चे कच्चे से जैकी, हीरो में हर दृश्य में पकते, तपते नज़र आते है. सिनेमा के कैमरे से कुछ हद तक अनजान , जैकी , की मासूमियत और अनजानापन, उनके किरदार में एक ख़ास किस्म की ईमानदारी भरने लगा. जहाँ पर जैकी के किरदार को कही अपने प्यार के हथोड़े से आकार में लाना होता था  , सुभाष घई , बहुत सलाहियत से किरदार को ज़्यादा सुडौल और तीखा बना देते.   फिल्म पूरा होते होते , जैकी में एक मुख्तलिफ किस्म का आत्मविश्वास दिखने लगता है. पहली ही फिल्म के आखिरी दृश्य तक पहुंचते पहुंचते , जैकी, अभिनय के आकाश के एक बड़े नछत्र बनने का हुनर हासिल कर लेते है  कुछ और फिल्म में  अपने हुनर के नुकीले हिस्से को, अपने श्रम से घिसते जैकी सफलता और असफलता के भंवर में फंस जाते है.

 

Source: https://www.youtube.com

 . वक़्त थोड़ा अपने कदमो के मुताबिक न चल रहा हो तो हमेशा आपका गुरु, पथ प्रदर्शक , आपके पांवो को सही दिशा में मोड़ देता है।  ऐसे वक़्त में उनके मेंटर और पारस सुभाष घई जैकी की हथेली की लकीरो में ' कर्मा' लिख देते है.  कर्मा , जैकी का वो बेहद साफ़ दिल का भी कर्मा था जिसमे उनकी सच्चाई, ईमानदारी और भोलापन , उनको वो सब दे रहा था जो इस साफ़ और नेक दिल इंसान को मिलना चाहिए था।  देशभक्ति की भावना और अभिनय की पितामह, दिलीप साब की संगत  ने जैकी को चरित्र में  लय  ताल डालने का हुनर सीखा दिया. 
अभिनय के कई दिग्गज के साथ इस फिल्म में जैकी ने नसीर साब से किरदार में ज़रूरत के मुताबिक ही नमक डालने का हुनर सीखा।  इसी फिल्म में जैकी ने अनिल कपूर से भी किरदार में आक्रोश डालना सीखा और अनिल  के साथ भी अपनी रिश्ते की डोर को सुर्ख रंग से रंग दिया.  इस सीखे हुनर का तोला  तोला  , माशा माशा इस्तेमाल ,जैकी 'काश' में करते नज़र आते है. सिनेमा की रोशन दुनिया के फलक से , अचानक धूल  में मिलते  फ़िल्मी सितारे की भूमिका में जैकी ने आँखों से लहू छलका दिया। 
 चमकते स्टार से उपेक्षित अभिनेता के दिन देखते जैकी पहले शराबनोशी की तरफ बढ़ते है. फिर शराब , जैकी के पैरो में लग़्ज़िश भर देती है और ये कमज़ोर  पैर , रिश्ते के बोझ को सँभालने में नाकाबिल हो जाते है।

पत्नी डिंपल कपाड़िया ,नौकरी करके जीवन बेहतर करने की कोशिश करती है लेकिन ये बात, मरासिम की दरार को खाई में तब्दील कर देती है. अब स्टार का  आखिर बेटे की बीमारी, दोनों को करीब ले आती है. मर्द की अना  , फेड होते हुए स्टार की हताशा और उतावलापन  जैकी के जिस्म से गुज़र कर, इतने खूबसूरत लगते है कि  नेगेटिव होते हुए किरदार से भी इश्क़ होने लगता है  
 इस फिल्म में जैकी श्रॉफ , किरदार की हर तह में भावनाओ की महीन नक्काशी करते चले जाते है. कई दृश्य ,इतने भावुक हो उठते है कि  मर्द भी अपनी आखो की कोर को सुखाने की कमज़ोर ज़द्दोज़हद करते दिखते  है. पति पत्नी के प्यार, हार, और दरकते रिश्ते ऐसी बानगी देखने को मिली की जैकी ने इस फिल्म में अभिनय के कई डिग्री, एक ही फिल्म में पा ली.

 

Source: https://www.ndtv.com/entertainment

देश भर के क्रिटिक , जैकी के अभिनय हुनर पर कसीदे पढ़ते है और  जैकी,  'रामलखन' से फिर एक बार बड़े भाई की शालीन भूमिका में दर्शको के दिलो की जागीर अपने नाम करते चले जाते है। राम जैसे गुण को अपनाते जैकी के भाई के प्रति स्नेह, सिनेमा को घर के आदर्श के रूप में भी स्थापित करता है।   

हर अभिनेता को ज़िन्दगी में एक फिल्म मिलती है जो उसके हुनर के एक एक क़तरे का बखूबी इस्तेमाल करती है और उसे अभिनय के अंतरिक्ष में ध्रुव तारा बनने का मौका देती है. जैकी को ' परिंदा' मिलती है जिसमे  जैकी ने अपने बदन को निचोड़ कर, बूँद बूँद ,अभिनय के नाम कर दी. विधु विनोद चोपड़ा  की इस फिल्म में  .  अनाथ जैकी , गैंगस्टर  अन्ना ( नाना पाटेकर ) का दाहिना हाथ बन जाता है  जरायम के पेशे में जाने से किसी का भला नहीं होता और कहानी की लम्बाई बढ़ते , जैकी के भाई अनिल की ज़िन्दगी ,छोटी होने लगती है. अपने भाई अनिल कपूर की हत्या , जैकी के रगो के लहू में ज्वालामुखी ले आती है।  अंत में , अपने भाई ( अनिल कपूर ) की हत्या के बदले में अन्ना  को भस्म कर देता है.



 आखिरी का  दृश्य जैकी की ज़िन्दगी के बेहतरीन अभिनय की किताब में उभरे अक्षर में दर्ज़ हो जाता है. त्रिदेव, सौदागर जैसी कई हिट फिल्म के बाद जैकी फिर उस मक़ाम पर पहुंचते है जहाँ हर एक्टर , खुद को एक बार देखना चाहता है.  ये फिल्म 'गर्दिश' होती है जिसमे जैकी का रूह, किरदार के जिस्म को ऐसे ओढ़ लेती है कि जैसे जैकी,इसी रूप में दुनिया में आये हैं.  एक ईमानदार हवलदार के शालीन बेटे से आक्रामक व्यक्ति में बदलने की परिस्थिति  वश यात्रा में जैकी ,इतना घुल जाते है की अभिनय और सच के बीच की महीन दीवार, टूटने लगती है.

 मोहल्ले में मुकेश ऋषि के आतंक से लोग बेहद डरे और खोल में सिमटे हैं. इसी गुंडे के द्वारा पिता का अपमान , एक बेहद सज्जन  बेटे  जैकी को ऐसे युवक में बदल देता है जिसे दर से अब कोई दर नहीं लगता।  जैकी अंत में मुकेश ऋषि के किरदार का अंत कर देते है।  इस फिल्म में अमरीश  पूरी ने भी हवलदार बाप का अविस्मरणीय अभिनय किया है जो ईमानदार और घर और परिवार को समर्पित है

 

Source:https://www.komparify.com/entertainment

 एक सीधा साधा नौजवान, एक गुंडे को मजबूरी में मारते मारते, कानून की खिलाफत कर बैठता है और बाप के सपनो को उनकी आँखों में तोड़ देता है.  १९४२ ए  लव स्टोरी के किरदार से गुज़र अब जैकी , रंगीला ' तक पहुंचते है और जैसे जैसे कहानी में अपने प्यार को हारते है, लोगो के दिल के छोटे छोटे हिस्से, अपने खाते में जमा करते है. फिल्म के आखिर में नायिका, उर्मिला मांतोडकर, आमिर के साथ चली जाती है और दर्शको का दिल जैकी के साथ।  उसके बाद जैकी ने बहुत सी फिल्म, टीवी में अपनी मरदाना ख़ूबसूरती  से लड़कियों के दिल पर अपनी रजिस्ट्री लिख दी 

 

Source:https://www.cinestaan.com/articles/2020/jan/23/24130


कल ये जग्गू दादा उर्फ़ जैकी श्रॉफ ६४ साल का जवान हो गया और उनकी आँखों के छूटे  ख्वाब, उनका बेटा टाइगर पूरा कर रहा है.

Avinash Tripathi

1 comment:

  1. Very TRUE..Jackie Shroff @Jaggu Bhai is very good human being, down to Earth, Responsible Person, Caring Father ..reflect in Tiger..I have spend 5 days with him in Shiva ka Insaaf..Um a great fan of Jaggu Bhai..Blessings 🀄👈🕺⚓️🎅🦁

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